Description
चंदा को नींद नहीं आ रही। खिड़की खोल वह बाहर झाँकने लगी। कुछ तो है वहाँ। घरों के बीच धीमे धीमे तैरता हुआ। गुब्बारा? उड़ने वाली मछली? चंदा के माँ-बाबा ने कहा कि वह इस गंदी चीज़ को नहीं रख सकती। चंदा ने सोचा कि वो कम से कम उसे अपने घर तो पहुँचा दे। पर वह तो बताती ही नहीं कि घर कहाँ है। बस कहती है, ‘आय’, ‘यु’, ‘कु’, ‘मान’, ‘त्सुकी’, ‘कारू’, ‘क़मर’ और फिर ‘चंदा’।
लीसा ऐसाटो अपने ख़ास अंदाज़ में जीवन की बड़ी बातों का ज़िक्र करती हैं। अकेलेपन का एहसास और आशा की डोर थामे रखना दोनों का स्पर्श उनकी कलम और कूची में मिलता है।
चंदा जहाँ खड़ी है वहाँ से दुनिया को देखिए। उसके कई रंगों को महसूस करिए।
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