निदेशक व प्रबंधक लोनली प्लेनेट इंडिया
लोनली प्लेनेट इंडिया के निदेशक सेष सेशाद्री प्रकाशन उद्योग में सबसे जानी मानी शख्सियतों में गिने जाते हैं। चार दशकों से इस व्यवसाय में इन्होंने अपनी विशिष्ट जगह बनाई है और 2012 में लोनली प्लेनेट को भारतीय बाजार में लाने का श्रेय इन्हें जाता है जब इन्होंने यात्रा गाइड की श्रृंखला प्रकाशित कीं। आजतक लोनली प्लेनेट ने 53 टाइटल निकाले हैं। सेष लोनली प्लेनेट इंडिया के लिए एक टिकाऊ और सफल जगह बनाये रखने में कार्यरत हैं और उनके आने वाले प्रकाशनों में बेहतरी लाने की चेष्टा कर रहे हैं।
1997 तक सेष ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से जुड़े थे जहाँ उन्होंने 25 वर्ष बिताये। सेष अकेले ऐसे व्यक्ति थे जो ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस की तीन सामरिक कमिटियों के सदस्य थे - शैक्षिक, अकादमिक व फाइनेंस एंड ऑपरेशन्स। प्रकाशन के ऊपर उनकी गहरी समझ का श्रेय वह ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस को देते हैं। वे डॉर्लिंग किंडर्सले के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर भी रह चुके हैं जहाँ उन्होंने कंपनी के गोदाम, ग्राहक सेवा, मार्केटिंग व प्रकाशन के तंत्रों में बुनियादी फेर बदल किया।
प्रकाशन के अनुभव के अतिरिक्त, चेन्नई में जन्मे सेष एक सफल परामर्शदाता व उद्योगपति रहे हैं। 1997 में उन्होंने प्रकाशन के लिए परामर्श देने वाली कंपनी ओवरलीफ की स्थापना की जो स्कूली कक्षाओं में गुणवत्तापूर्ण ज्ञानवर्धन और विश्व-स्तरीय सीखने के संसाधन देने के लिए काम करती है। वे डेविड होरसबुर्ग द्वारा स्थापित नीलबाग स्कूलों के ट्रस्टी भी हैं। साथ ही वे टेक्सटेक के संस्थापक निदेशक हैं जो किताबों, ईबुक के द्वारा अकादमिक समाधान प्रदान करती है जिससे अन्य प्रकाशक उचित सामग्री बनाना,उसका प्रबंधन, उसका पुनर्योजन व वितरण करते हैं। वे एसोसिएशन ऑफ़ पब्लिशर्स इन इंडिया के महासचिव हैं। वे एक प्रकाशक परिवार से आते हैं जहाँ इस क्षेत्र का कुल अनुभव 100 वर्ष से ज़्यादा है।
प्रकाशन और परामर्श के अलावा सेष क्रिकेट के दीवाने हैं। यदि वे प्रकाशन उद्योग में नहीं आये होते तो वे अवश्य एक क्रिकेट के अंपायर होते। उन्हें दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत का शौक है और वे अनेक दक्षिण भारतीय भाषाएँ बोलते हैं।
निदेशक, ज़ुबान बुक्स
उर्वशी बुटालिआ भारत के पहले नारीवादी प्रकाशन संस्था काली फॉर विमेन की सहसंस्थापक हैं और 2003 से (जब काली बंद हुआ) ज़ुबान पब्लिशर्स की निदेशक हैं। भारत के नारी आंदोलन से उनका पुराना नाता है और उन्होंने जेंडर, इतिहास व भारत में नारीवाद पर बहुत कुछ लिखा है व प्रकाशित किया है। उनके अपने प्रकाशनों में भारत के विभाजन के ऊपर मौखिक इतिहास को तरजीह देने वाली ‘द अदर साइड ऑफ़ साइलेंस-वॉइसेस फ्रॉम द पार्टीशन ऑफ़ इंडिया’ को बहुत सराहना मिली व कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया (2001 का ओरल हिस्ट्री बुक एसोसिएशन अवार्ड, 2003 में निक्की एशिया अवार्ड फॉर कल्चर)। साथ ही उर्वशी को फ्रांसीसी सरकार का पुरस्कार शेवालिए डे आर्ट्स डे लेटर्स, पोलैंड की सरकार का बेने मेरिटो, जर्मनी का गेटे मैडल और भारत में पद्मश्री से भी नवाज़ा गया है।
प्रमुख, जी सी डी स्टूडियो
गोपिका जानी मानी एम् एस यूनिवर्सिटी,बड़ोदा की फैकल्टी ऑफ़ फाइन आर्ट्स से पढ़ीं। वे 35 से अधिक वर्षों से एक रचनात्मक व्यवसायी के रूप में काम कर रही हैं और आज देश में अग्रणी ग्राफ़िक डिज़ाइनरों में उनका नाम आता है। रचनात्मक उद्योग में उन्हें बहुत सम्मान मिला है। प्रमुख विज्ञापन संस्थाओं में बतौर आर्ट डायरेक्टर और क्रिएटिव डायरेक्टर के पदों पर उन्होंने 10-12 साल तक काम किया और फिर अपना डिज़ाइन स्टूडियो खोला जिससे वे ऐसे प्रोजेक्टों पर काम कर सकें जिनमें उनकी रूचि है और जो उन्हें चुनौतीपूर्ण लगते हैं।
बड़े बजट वाली बड़ी कंपनियों और छोटी ग़ैर मुनाफ़ा संस्थाएँ जो सामाजिक विकास व कला से जुड़ा काम कर रही हैं - गोपिका ने इनके बीच में एक संतुलन खोजा जिस से उनका स्टूडियो रचनात्मक रह कर भी मुनाफ़ा कमाता रहा। उन्होंने स्पाइस जेट, ओबेरॉय होटल जैसे ब्रांड खड़े किये हैं। साथ ही वे नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा व दिल्ली फोटो फेस्टिवल जैसी कला से जुडी संस्थाओं के साथ काम करती रही हैं।
अब वे जी सी डी स्टूडियो की प्रधान पार्टनर हैं जहाँ उनकी दो प्रमुख डिज़ाइनरों उनकी पार्टनर बनीं। स्टूडियो में सभी महिला कर्मी हैं और गोपिका नए डिज़ाइनरों को तराशने में विशेष रूचि लेती हैं जिससे वे सफल व्यवसायी बनना सीखें और अच्छी डिज़ाइनर भी।
एक सफल डिज़ाइनर होने के साथ साथ गोपिका दृश्य कलाओं से भी जुडी रही हैं। वे स्वयं भी कला की रचना करती हैं तथा कला के ऐसे प्रोजेक्ट में हिस्सेदारी करती हैं जहाँ और कलाकार भी शामिल होते हैं। उनकी कलात्मक अभिव्यक्तियाँ विज्ञापन जगत व मार्केटिंग में उनके अनुभव से बहुत हद तक सींची जाती हैं और आधुनिकोत्तर समाज की कहानियों को दर्शाती हैं। फोटोग्राफी, ललित कला, डिजिटल माध्यम, वीडियो आर्ट, चित्रकला का इस्तेमाल तो वे करती ही हैं - वे स्टील से ले कर कढ़ाई के धागों जैसी वस्तुओं का इस्तेमाल कर ऐसे इंस्टालेशन व तजुर्बे बनातीहैं जिनसे हमारे मौजूदा सामाजिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक तंत्रों पर संवाद की शुरुआत हो।
उनकी कला भारत के अनेक कला महोत्सवों में प्रदर्शित हुई है जिनमें सेरेंडीपीटी आर्ट्स फेस्टिवल, सेनसोरियम फेस्टिवल, यूनाइटेड आर्ट फेयर व कई सामूहिक प्रदर्शन शामिल हैं।
गोपिका कभी दिल्ली तो कभी गोवा में रहती हैं।