If you wish to purchase any of our books, please head to our online store to place an order:
Bi-monthly Magazine
चहक के हर प ने पर बच्चों को सोचने, समझने और स्वयं कुछ करने का मौका दिया गया है। रोचक कविताओं, कहानियों, विवरण, सन्दर्भ व चित्रों के द्वारा बच्चों में पढ़ने का और गणित की क्रियाओं का अभ्यास तो बढ़ेगा ही—साथ ही आस-पास की दुनिया को नयी नज़र से देखने और उस पर अपनी राय बनाने की भी शुरुआत होगी। स्कूल की किताबों के अलावा कुछ ऐसा मिले जिसे पढ़ने में आनंद आये और उस पर सोचने की क्रिया सहज रूप से आगे बढे तभी शिक्षा का सार्थक प्रभाव जीवन में नज़र आएगा।
शिक्षक और अभिभावक साथियों! चहक के हर प ने पर दिए गये अभ्यास स्कूल में पढ़ाये जाने वाले विषयों और कौशलों से जुड़े हैं। बच्चों से ये अभ्यास तो करायें ही साथ ही साथ चहक में दिए निर्देशों की तर्ज़ पर और गतिविधियाँ बनायें, जो आपके क्षेत्र और बच्चों के लिए माकूल हों और उनके साथ भी बच्चों को अभ्यास करायें। आप पाएँगे कि चहक बच्चों के सीखने की गति और स्तर दोनों ही बढ़ाने में उपयोगी और कारगर पत्रिका है।
We would like to hear from you. Use the form on the GET IN TOUCH page and send us your valuable comments and suggestions.
Bi-monthly Magazine
बच्चे अपने परिवेश से निरंतर कुछ न कुछ नया सीखते रहते हैं. यदि उन्हें विविध सामग्री मिले और सोचने और महसूस करने का स्वछन्द वातावरण हो तो उनकी प्रगति आपको चकित कर देगी! पाठ्य पुस्तक के अतिरिक्त उन्हें रोचक सामग्री मिलती है तो उनके सीखने में अभ्यास की गहरायी आती है।
मिलिए मितवा से — एक ऐसी पत्रिका जिसमें कहानियों, कविताओं, पहेलियों, चित्रों और गतिविधियों का खज़ाना है जो कक्षा की शिक्षा से जुड़ा है। देश के बेहतरीन शिक्षाविदों द्वारा रची गयी ये हर स्कूली बच्चे को सीखने का आनंददायक अवसर देगी। कलात्मक, रुचिकर और बहुत ही वाजिब दाम की मितवा वास्तव में आपके बच्चे की मित्र है—स्कूल में, घर में और गली-मोहल्ले में!
We would like to hear from you. Use the form on the GET IN TOUCH page and send us your valuable comments and suggestions.
If you wish to purchase any of our books, please head to our online store to place an order:
लेखन अदिति घोष, चित्रांकन सोनल गोयल
पुहोर और उष्मी के नए रोमांचकारी कारनामों में शामिल हो जाइये। एक नई लहर आपको भी उल्लास से भर देगी।
अंग्रेज़ी, हिन्दी, मराठी, कन्नड़ एवं ओड़िया भाषाओं में उपलब्ध | मूल्य: रु. 200
पुहोर और उष्मी की माँ अपने कबीले के बाकी लोगों की तरह ही एक अच्छी बुनकर थीं। क्या वे मशीन से चलने वाले करघे को अपनाना चाहेंगी? पुहोर और उष्मी को विश्वास ही नहीं हुआ कि वह अपने पारम्परिक हथकरघे से संतुष्ट हैं और उन्हें इस विचार ने प्रभावित नहीं किया! पर वह दोनों भी हार मानने वालों में से नहीं थे। उन्होंने नदी के उस द्वीप पर जाकर उनके कबीले के अन्य बुनकरों से अपनी शानदार नयी तकनीक के बारे में बात करने की ठानी। विशाल ब्रह्मपुत्र नदी तभी क्या करने वाली थी इसका उन्हें अंदाज़ा भी नहीं था। द्वीप पर वर्षा का ऐसा प्रकोप हुआ कि पुहोर और उष्मी सुरक्षित लौट तो आए पर उस बीच वहाँ के लोगों की वास्तविक ज़रूरतों के बारे उन्होंने बहुत कुछ जाना। कई श्रेष्ठ शिल्पकारों की मदद से पुहोर और उष्मी ने तकनीकी विशेषज्ञता और लोगों की ज़रूरतों के बीच सामंजस्य बनाना सीखा। इस पूरे घटनाक्रम से जो अनोखी नदी की एम्बुलेन्स बनकर निकली उसका नामकरण हुआ ‘कमलाबाड़ी’। यही नाम क्यों चुना गया? पढ़िये और जानिए।
(साइज़: 6.75 x 9.5 इंच, 24 पृष्ठ)
लेखन माला कुमार, चित्रांकन अनुपमा अजिंक्या आप्टे
दादा जी कैसे मिले और संजना ने सोचना कैसे शुरू किया? ऐसे सवालों के जवाब चाहियें तो ढब ढबी पर शूटिंग पढ़ डालिये।
अंग्रेज़ी, हिन्दी, मराठी, कन्नड़ एवं ओड़िया भाषाओं में उपलब्ध | मूल्य: रु. 200
दीपक के दादा जी को लगता है कि केंचुए उनका गाना सुन कर अच्छी खाद जल्दी बनाते हैं। अच्छी खाद से बैंगन जल्दी बढ़ते हैं। जितने अच्छे बैंगन उतनी बढ़िया सब्ज़़ी—जो दीपक का परिवार ‘मुकरापुरा खानेवाली’ में ग्राहकों के लिए बनाता है। इतनी बढ़िया कि मशहूर फ़िल्मी सितारे माल्विका और विनय कुमार भी उँगलियाँ चाटते नज᳝र आते हैं! पर उससे पहले ढब ढबी झरने पर शूटिंग के दौरान दीपक और उसकी मौसेरी बहन संजना को बड़ी मुसीबतों से गुज᳝रना पड़ा। पढ़िये और जानिये कि दीपक और संजना के साथ शूटिंग के दौरान क्या क्या नहीं हुआ।
दिल और दिमाग़ को `रीचार्ज´ करने के लिए हो जाइए शामिल उनके रोमांचकारी सफ़र में!
(साइज़: 6.75 x 9.5 इंच, 24 पृष्ठ)
लेखन अदिति घोष, चित्रांकन सोनल गोयल
पुहोर ने उस दिन की लाज बचाई या उस रात पुहोर सब पर छा गया - इसमें क्या कहना सही होगा यह तो टिमटिमाते सपने पढ़ने पर ही पता चलेगा।
अंग्रेज़ी, हिन्दी, मराठी, कन्नड़ एवं ओड़िया भाषाओं में उपलब्ध | मूल्य: रु. 200
पुहोर के लिए पूरी दुनिया एक ऐसी प्रयोगशाला थी जहाँ वो करता था अपने अजीबोगरीब प्रयोग! अक्सर उसके कारनामे उसे हेडमास्टर साहब के कमरे तक पहुँचा देते थे, जहाँ उसे शाबाशी नहीं बल्कि चेतावनी मिलती थी। पुहोर की बड़ी बहन उष्मी उसको लेकर बहुत परेशान रहती थी लेकिन उसे यह भी मालूम था कि उसके भाई के विचार कमाल के होते हैं। ये तो बस वक़्त की बात थी और सब ठीक हो जाने वाला था। उसे क्या पता था कि शोणितपुर का विज्ञान मेला दोनों भाई-बहन की ज़िन्दगी बदल देने वाला है! और तो और बॉलीवुड की मशहूर हीरोइन भी उनकी ‘फ़ैन’ बन जाएगी!
(साइज़: 6.75 x 9.5 इंच, 24 पृष्ठ)
लेखन माला कुमार, चित्रांकन सोनल गोयल
रहस्य्मयी जंगलों में घूमते संजना और उसके दोस्तों से मिलिए। उन्हें पता चलता है कि प्रकृति से कितने आविष्कारों के लिए प्रेरणा मिलती है। भितरकनिका के मगमच्छ पढ़िए और आप भी प्रेरणा पाइये।
अंग्रेज़ी, हिन्दी, मराठी, कन्नड़ एवं ओड़िया भाषाओं में उपलब्ध | मूल्य: रु. 200
संजना हाल ही में शोरगुल भरे और बड़े शहर बेंगलुरु से ओडिशा के केंद्रपाड़ा में आई है। यह जगह अपने मैन्ग्रोव वनों के लिए प्रसिद्ध है। मैन्ग्रोव अजूबे वनस्पतियों और जीवों से भरा आकर्षक स्थान है। यहाँ मीठे नदी के पानी का नमकीन समुद्री जल के साथ मिलन होता है। संजना को यहाँ प्रेरणा मिलती है और वह अपने अंदर एक ‘आविष्कारक’ को खोज पाती है। साथ ही साथ उसे और उसके दोस्तों को यह भी अहसास होता है कि इस अनूठे, हरे-भरे और कीचड़ वाले क्षेत्र में पल-पल पर त्रासदी और खतरा है। नाव चलाने वाले बिमल दा उनके शिक्षक बन जाते हैं और मैन्ग्रोव के बारे में बहुत सी दिलचस्प बातें बताते हैं। संजना और उसके दोस्त जीवन के बारे में एक बड़ा महत्वपूर्ण सबक भी सीखते हैं।
संजना और उसके साथियों से मिलो जो इस रहस्यमयी जगह पर घूमते हुए पाते हैं कि कैसे नई चीजों का आविष्कार करने के लिए प्रकृति विचारों से परिपूर्ण है!
(साइज़: 6.75 x 9.5 इंच, 24 पृष्ठ)
लेखन माला कुमार, चित्रांकन सोनल गोयल
संजना आईडिया एक्सप्रेस में एक लम्बी दिलचस्प यात्रा पर निकल पड़ी है। इसके दौरान वो एक इकोसिस्टम की अहमियत समझ पाती यानि किसी नए विचार को सफल बनाने के लिए कितनी बातों में तालमेल ज़रूरी है।
अंग्रेज़ी, हिन्दी, मराठी, कन्नड़ एवं ओड़िया भाषाओं में उपलब्ध | मूल्य: रु. 200
संजना और उसके माता-पिता भुवने वर से बीकानेर की लम्बी रेल यात्रा पर निकले थे। संजना को अभी-अभी अपने दोस्त पुहोर के बारे में एक मेल मिली थी जिसमें यह खबर थी कि वह चाय के प्याले में एक तूफ़ान उठा रहा था। इस्तेमाल हुई चाय की पत्ती से ऊर्जा उत्पन्न करने का उसका विचार यात्रा के दौरान गरमागरम बहस का विषय बन गया। क्या इस्तेमाल हुई चाय की पत्ती से वास्तव में स्वच्छ ऊर्जा बन सकती है?
चाय और गरम समोसों के साथ साथ अपने विचारों को गर्मी दें। आप जल्द ही जानेंगे कि किसी भी विचार को वास्तव में सफल बनाने के लिए कितने लोगों, संस्थानों और चीज़ों के बीच तालमेल बैठाना ज़रूरी है—यानि एक पूरा ‘इकोसिस्टम’ जब साथ मिल के काम करता है तभी बात बनती है!
(साइज़: 6.75 x 9.5 इंच, 24 पृष्ठ)
If you wish to purchase any of our books, please head to our online store to place an order: