सदस्य, ग्रुप इग्नस
दीप्ती ने डॉक्टरेट की उपाधि के लिए निराश्रित शहरी बच्चों की शिक्षा पर शोध किया। कई गैरसरकारी संस्थाओं में काम करने के बाद वे सेंटर ऑफ़ इक्विटी स्टडीज के ‘रेनबो होम्स’ से जुड़ीं। इग्नस पहल में विभिन्न प्रोजेक्टों में शोध वदस्तावेजीकरण की ज़िम्मेदारी उठा रही हैं। हाल में उत्तर प्रदेश में हुए बड़े पैमाने के मूल्यांकन में उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई। दीप्ती को पूरा विश्वास है कि यदि आप बच्चों की क्षमताओं पर भरोसा करें और नाज़ुक मोड़ों पर उनका साथ दें तो हर बच्ची कुछ कर के दिखाती है।
सदस्य, ग्रुप इग्नस
शिक्षा के क्षेत्र में अपना व्यावसायिक जीवन शुरू करने के समय गुरजोत फिजिक्स में स्नातकोत्तर डिग्री की पढाई पूरी कर रहे थे। इसमें उनकी विशेष रूचि सामाजिक विज्ञान में शोध और कम्प्यूटेशनल मॉडलिंग में थी। पिछले दो वर्षों में गुरजोत इग्नस में अपने सहकर्मियों के साथ ज़मीनी स्तर पर शिक्षा के गुणवत्ता सुधार कार्यक्रमों को लागू कर रहे हैं। तथ्यों और निर्विवाद उपाख्यानों के आधार पर कैसे कार्यपद्धति गढ़ी जाती है यह सीखना उनके लिए बड़ा ही रचनात्मक अनुभव रहा है। मनन बुक्स की सीखने की पत्रिकाओं में गुरजोत लेख, चुटकुले कविताएँ लिखते हैं और अपनी राय दे कर उनकी सामग्री को बेहतर बनाने में मददगार हैं। वेबमास्टर की महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए गुरजोत और सोशल मीडिया पर भी वार्तालाप जारी रखते हैं। वो अकेले ही पूरी संस्था की उम्र घटाने का दुरूह काम करते हैं और दिन में कम से कम एक बार सबको ठहाका लगाने के लिए मजबूर कर देते हैं।
निदेशक, मनन बुक्स
मनीषा लम्बे समय से प्रकाशन के क्षेत्र में सक्रीय रही हैं। सामाजिक विकास से भी उनका पुराना नाता है। 1986 में उन्होंने भारत के पहले नारीवादी प्रकाशक काली फॉर विमेन में अपना व्यावसायिक जीवन शुरू किया। अनेक विकास से जुडी व संयुक्त राष्ट्र संस्थाओंके साथ मनीषा ने परामर्शदाता के रूप में काम किया। वे हिंदी व अंग्रेज़ी में संपादन व अनुवाद करती हैं और उनकी किताबें काली फॉर विमेन, ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस,ज़ुबान बुक्स,नियोगी बुक्स और प्रथम बुक्स द्वारा प्रकाशित हुई हैं। जेंडर के मुद्दों पर कई साल काम करने के पश्चात् वे प्राथमिक शिक्षा से जुड़ीं। सभी बच्चों की पहुँच गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सुनिश्चित करने पर उनका काम केंद्रित रहा है। 2004-2017 तक मनीषा प्रथम बुक्स-एक गैर मुनाफा बहुभाषीय प्रकाशन संस्था में बतौर प्रधान संपादक रहीं। उन्होंने बच्चों के लिए कई किताबें लिखीं और बहुतों का अनुवाद किया।
प्रकाशन के अतिरिक्त, मनीषा ने बच्चों में पठन-पाठन को बढ़ावा देने के लिए हुई पहलों में शिरकत करी। वे 'बुकरू चिल्ड्रेन्स लिटरेचर फेस्टिवल' की संस्थापक ट्रस्टी में से एक थीं। 'बुकरू इन द सिटी; तथा जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में 'चिल्ड्रन'स आउटरीच' की शुरुआत में मनीषा की अहम् भूमिका रही। कहानी फेस्टिवल तथा जर्मन बुक ऑफिस के बाल साहित्य केंद्रित 'जंपस्टार्ट' में सलाहकारी के अलावा वे फ़िक्की पब्लिशिंग समिति की आमंत्रित सदस्य हैं। सभी बच्चों को अपनी मातृभाषा में पढ़ने का आनंद मिले और अच्छी शिक्षा से अपनी राह खुद ढूँढ निकालें-इसके लिए मनीषा प्रतिबद्ध हैं। वे मनन बुक्स की सह-संस्थापक हैं।
नयी भाषाओं की ध्वनि उन्हें आकर्षित करती है। शास्त्रीय संगीत और रंगमंच में भी उनकी रूचि है। मनीषा के लिए जाड़े की धूप में बैठ कर अपनी प्यारी लैला के साथ संतरे खाने से बड़ा सुख नहीं है। आजकल वे उर्दू पढ़ना सीखने के लिए मंथर गति के प्रयास कर रही हैं।
प्रोडक्शन प्रमुख,मनन बुक्स
मुकेश का प्रकाशन से जुड़े रूपांकन व छपाई का अनुभव 26 वर्ष से अधिक है। प्रकाशन के लिए बजट बनाना तथा प्रेस में जाने से पूर्व और उसके पश्चात किताबों की पैकिंग और डिलीवरी तक की हर प्रक्रिया पर मुकेश की पकड़ है। पिछले 15 सालों में उन्होंने अनेक भारतीय भाषाओँ में 2500 से ज़्यादा किताबें तैयार की हैं।
उनकी निगरानी में बने अनेक टाइटल उतकृष्ट प्रोडक्शन के एफ़आईपी अवार्ड पा चुके हैं। छपने पर चित्रों में उचित रंग दिखाई दें और उपलब्ध सामग्री से बेहतरीन किताब बने - मुकेश का तजुर्बा इसे सुनिश्चित करता है। अनेक भारतीय भाषाओँ में मुकेश ने चार्ट, अखबार,पत्रिकाएँ,शब्दकोष,यात्रा गाइड,शैक्षिक पुस्तकें,बालसाहित्य व और भी बहुत कुछ तैयार किया है।
यूनिकोड फॉन्ट व पर्यावरण के लिए कम हानिकारक छपाई के विकल्पों से मुकेश भली भाँति परिचित हैं। बहुभाषीय छपाई के लिए सबसे सटीक बजट व योजना बनाने में उनकी समझ बहुत गहरी है। वे मनन बुक्स के सह-संस्थापक हैं। जब वे अपने कंप्यूटर पर व्यस्त नहीं होतेतो मुकेश पकवानों के शौक को पूरा करते हैं। चाँदनी चौक में हफ्ते में किस दिन कहाँ सबसे अच्छे समोसे और दहीबड़े मिलते हैं इसकी पूरी जानकारी मुकेश आपको दे सकते हैं।
सदस्य, ग्रुप इग्नस
शुभांगी ने आई आई टी बॉम्बे बायोसाइंसेज व बायोइंजीनियरिंग विभाग से पी एचडी की उपाधि प्राप्त की है और होमी भाभा सेंटर फॉर साइंस एजुकेशन,टी आईएफआर,मुंबई से पोस्ट -डाक्टरल अध्ययन किया है। उसके बाद उन्होंने स्कूली शिक्षा में काम करने वाली गैरसरकारी संस्थाओं में ज़मीनी स्तर पर व सर्वांगी स्तर पर काम किया है।
शुभांगी मानती हैं कि पढ़ने से नज़रिये,मनोभाव व ज़िंदगियाँ बदल सकती हैं। खुद एक उत्साही पाठक, शुभांगी आजकल लेखन में अपना हाथ आज़मा रही हैं। वे कहती हैं किताबों की जादुई दुनिया में प्रवेश करने के लिए कभी न जल्दी होती है न देर। शिक्षण व शोध की ऊर्जा से ओतप्रोत, शुभांगी आज सोचती हैं कि काश उन्होंने इतने साल सिर्फ पढाई की पुस्तकों के साथ न बिताये होते! आज वो इस कमी को पूरा कर रही हैं और आपबीती औरों को सजग करने के लिए सुनाती हैं। उनके लिए एक पुस्तक से बढ़ कर ऐसा कोई और सूक्ष्म और सरल माध्यम नहीं है जो बच्चों और वयस्कों में कल्पनाशीलता और रचनात्मकता उत्पन्न करे। वे मनन बुक्स से जुड़ कर प्रफुल्लित हैं जहाँ वो बच्चों के लिए रोचक पठनव गतिविधियाँ सुझाती हैं और सीखना खुद-ब-खुद हो जाता है!
प्रधान समन्वयक ग्रुप इग्नस
1985-92 के बीच सुबीर ने (एकलव्य, म.प्र. के साथ) एक दूरदराज़ के गाँव में रह कर प्राथमिक शिक्षा पर अपनी समझ बनायी। उसके बाद वे राष्ट्रीयपुस्तक न्यास में नेशनल सेंटर फॉर चिल्ड्रेन्स लिटरेचर में बतौर संपादक रहे। मानव संसाधन मंत्रालय में पाठ्यक्रम व पाठ्य पुस्तक निर्माण में परामर्शदाता के रूप में उन्होंने डीपीईपी में काम किया। प्राथमिक शिक्षा में गुणवत्ता सुधारके लिए उन्होंने कई राज्य सरकारों, गैरसरकारी संस्थाओं व एशिया व अफ्रीकी देशों की सरकारों के साथ काम किया है।
2003 में उन्होंने ग्रुप इग्नसकी स्थापना करी (जो 2013 में इग्नस ईआरजी एजुकेशन रिसोर्स प्राइवेट लिमिटेड और इग्नस पहल नामक गैर मुनाफा कंपनी के रूप में पंजीकृत हुई। मनन बुक्स इसी का हिस्सा है)। 2009-2011 के दौरान सुबीर मानव संसाधन विकास मंत्रालय में राइट टु एजुकेशन के गुणवत्ता फ्रेमवर्क के लिए परामर्शदाता रहे। उन्होंने बच्चों के लिए कई लोकप्रिय किताबें लिखीं हैं जो राष्ट्रीय पुस्तक न्यास व तूलिका के द्वारा प्रकाशित हुईं। हस्तलिपि, बैडमिंटन व कहानियाँ सुनाना सुबीर के ऐसे शौक हैं जिनके लिए वे और वक़्त निकालना चाहते हैं।
निदेशक प्रोग्राम्स, ग्रुप इग्नस
सुरेंद्र राष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षक और स्कूल के प्रधानाध्यापक रहे हैं। उन्होंने एक सफल बाल पत्रिका चलाई है और उत्तर प्रदेश में स्टेट रिसोर्स ग्रुप के सदस्य रहे हैं जहाँ उन्होंने प्राथमिक स्तर के करिकुलम व पाठ्य पुस्तक विकास पर काम किया।
सरकारी तंत्र से समय से पूर्व अवकाश लेने के बाद सुरेंद्र ग्रुप इग्नस के सह-संस्थापक बने। ग्रुप इग्नस में उन्होंने अनेक राज्यों में करिकुलम, पाठ्य पुस्तक,शिक्षक प्रशिक्षण व संस्था विकास पर काम किया। अपने गहरे तजुर्बे के आधार पर विद्यार्थियों के लिए पठन सामग्री व पाठ्य पुस्तक तैयार करने में उन्होंने विभिन्न राज्यों में अहम् भूमिका निभाई।
सुरेंद्र ने वाराणसी में एक सफल पुस्तकालय कार्यक्रम चलाया है जिसमें बच्चों के सीखने के स्तर में बहुत सुधार हुआ है। उन्होंने लेखकों के लिए बहुत सी कार्यशालाएँ चलायी हैं जिनमें निम्न आय परिवारों के बच्चों के सीखने के सन्दर्भ को ध्यान में रख कर बेहतरीन सामग्री तैयार की गयी है। जब सुरेंद्र किसी प्रोजेक्ट में नहीं डूबे होते तो हर तरह की चुनौती उठाने के लिए लालायित रहते हैं - चाहे वो बच्चों के लिए पाँसे का खेल बनाना हो, एक चुलबुली कविता लिखनी हो या कोई चटपटा व्यंजन तैयार करना हो।
सदस्य, ग्रुप इग्नस
तुषार 1985 से अब तक अपने आप को स्कूली शिक्षा का विद्यार्थी मानते हैं। एक शोधकर्ता के रूप में प्रशिक्षित, वे परिस्थितियों की माँग पर एकपरामर्शदाता बन गए हैं। साइंस, टेक्नोलॉजी एंड मैथमेटिक्स टीचर्स के कामनवेल्थ अवार्ड से नवाज़े गए तुषार ने भारत के सबसे रचनात्मक स्कूलों में विज्ञान और गणित पढ़ाया है। उन्होंने शिक्षकों व स्कूली नेतृत्व से जुड़े लोगों को सिखाया है (देश भर में एक कॉर्पोरेट समूह के लिए के -12 स्कूल शुरू किये हैं) और वो बड़ी शिद्दत से ऐसे लोगों के साथ जुड़ते हैं जो कुछ नया करने से नहीं कतराते। आजकल वे सरकारी स्कूलों के शिक्षक व अधिकारियों,निजी स्कूलों के मालिक व प्रशासकों से ले कर अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों से जुड़ रहे हैं। चिंतनशील काम के साथ साथ तुषार मुस्कुराते हुए गणित की पहेलियाँ देने का काम भी बखूबी करते हैं।